22 मार्च 2023, श्रीगंगानगर
चैत्र सुदी नवरात्रि का आज प्रथम दिवस है। बुधवार के दिन प्रारंभ होने से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। रिद्धि सिद्धि के दाता भगवान श्री गणेश जी, मां अंबे के निमित्त घटस्थापना करने वाले भक्त जनों के घर पर व जीवन में अपार कृपा करते हैं।
नवरात्रि के पहले दिन ही घट स्थापना की जाती है। इसके बाद नौ दिनों तक नियमित रूप से कलश पूजन किया जाता है।अगर आप भी घट स्थापना करने के बारे में सोच रहे हैं, तो यहां जानिए इसका शुभ मुहूर्त और स्थापना विधि।
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र की मानें तो नवरात्रि में घट स्थापना हमेशा शुभ मुहूर्त में करना अच्छा होता है.।इसकी वजह है कि शुभ मुहूर्त में कोई भी काम करने से उस कार्य में व्यवधान नहीं आते।
घट स्थापना का शुभ समय
ज्योतिषाचार्य का कहना है कि,” चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि 21 मार्च 2023 की रात 10.52 से शुरू हो जाएगी और इसका समापन 22 मार्च 2023 को रात 08.20 मिनट पर होगा। नवरात्रि पर कलश स्थापना का अति शुभ समय
06 बजकर 29 मिनट से सुबह 07 बजकर 32 मिनट तक है।
इसके बाद 09 बजकर 25 मिनट तक स्थापना का शुभ समय रहेगा।
घट स्थापना विधि-
सबसे पहले जल्दी उठकर स्नानादि के बाद मंदिर की सफाई करें। इसके बाद एक चौकी पर माता की प्रतिमा या स्वरुप रखें। फिर भगवान गणेश को याद कर पूजन कार्य प्रारंभ करें।
अब एक मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालें, उसमें जौ डालें.। कलश या घर के लोटे को अच्छे से साफ करके उस पर कलावा बांधें, स्वास्तिक बनाएं.।कलश में गंगा जल डालकर पानी भरें।उसमें दूर्वा, साबुत सुपारी, अक्षत और दक्षिणा डालें।
इसके बाद कलश के ऊपर आम या अशोक 5 पत्ते लगाएं और कलश को मिट्टी के ढक्कन से बंद करें। ढक्कन के ऊपर अनाज भरें।नारियल को लाल चुनरी में लपेटकर इसके ऊपर रखें।अब इस कलश को जौ वाले मिट्टी के पात्र के बीचोबीच रख दें।इसके बाद मां दुर्गा के सामने”ऊं एं हीं क्लीं चामुंडायै विच्चे नमः” मंत्र का जाप करते हुए अखंड ज्योत प्रज्वलित करें।
फिर सभी देवी देवताओं का आवाह्रन करके माता के सामने व्रत का संकल्प लें। इसके बाद विधिवत पूजन करें।
ऐसे करें पूजन-
पूजा के दौरान माता को जल, रोली, अक्षत, पुष्प, दक्षिणा, वस्त्र या कलावा, लौंग का जोड़ा, धूप, भोग आदि अर्पित करें. इसके बाद मां के मंत्रों के जाप करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें, दुर्गा चालीसा पढ़ें. संभव हो तो कंडे से आहुति दें।इसके बाद कपूर,धूप,दीप से माता की आरती करें। पूजा के बाद मातारानी से क्षमा याचना करें।
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