श्रीगंगानगर, 16 अक्टूबर। गजसिंहपुर क्षेत्र में सेठ सूरजमल बोथरा का नाम कभी भी परिचय का मोहताज नहीं रहा है। हो भी कैसे अपने 84 साल के जीवन का एक लंबा समय स्वर्गीय बोथरा जी की कर्मभूमि जो रहा है, गजसिंहपुर। चौटाला से गजसिंहपुर आकर बसने वाले सेठ सूरजमल बोथरा का जन्म 2 सितम्बर 1939 को पिता काशीराम जी बोथरा जी के यहां हुआ था। अपनी पांच बहनों के अकेले भाई सूरजमल पर उस समय विपत्तियों का पहाड़ टूटा जब मात्र 8 वर्ष की छोटी सी उम्र में इनके सिर से पिता का साया उठ गया। संकट के इस समय में माता हुलासी देवी का पारिवारिक सहयोग ने न सिर्फ हिम्मत दी बल्कि संघर्षपूर्ण हालातों में लालन पालन ने इनमे हिम्मत, मेहनत और ईमानदारी के संस्कार पैदा किये।
बाल्यावस्था में आपने स्व. रामरखा चावला से मुनीमी के गुरुमंत्र सीखे और स्व. गौरीशंकर गीदड़ा के खेत, चक्की और दुकान पर मुनीमी के कार्य किये। बाद में गजसिंहपुर की फर्म मेहरसिंह हरबंस सिंह में पूरी लग्न और प्रमाणिकता के साथ मुनीमी का कार्य किया।
मेहनती, योग्य, जिम्मेदार और भरोसेमद सूरजमल को सन 1960 में जब गेहू 5 रूपये क्विंटल मिलती थी, उस समय 110 रुपये वेतन मिलता था। फर्म एॅम एच् के मालिकों, रिश्तेदारों, बूटरसर के स्व. कपूरसिंह के आर्थिक सहयोग, मित्र दोस्तों ओमप्रकाश पटवारी, सरदार रतनसिंह, जनकराज सूद की हौसला अफजाई से आपने मात्र 26 वर्ष की उम्र में साल 1964 में रामनवमी के दिन गजसिंहपुर की मंडी में फर्म ‘‘काशीराम सूरजमल’’ की शुरुआत की प्रारम्भिक वर्षाे में साथी धर्मसिंह की चाय पत्ती, गंगानगर के सरदारीलाल की साबुन और दूसरा परचूनी सामान साईकिल पर लाद कर रेतीले टिब्बो वाले गावों व ढाणियों बेचकर मेहनत और लग्न से व्यापारिक सम्पर्क बनाया। इसी दौरान आढ़त काम में 4 आर बी के वीर बहादुर, राजपुरा के रावतराम और अन्य जमीदारो का ऐसा साथ मिला कि आज की नई पीढ़ी के साथ मजबूत पारिवारिक रिश्तो बने हुए है। माता हुलासी देवी और पत्नी मोहनी देवी ने भी इस दौर में व्यापारिक वृधि में अप्रत्यक्ष रूप से पूरा साथ दिया।
71 के पाक युद्ध में जब अधिकांश व्यापारी दूर सुरक्षित स्थानों में पलायन कर गये, लेकिन साहसी और दूरदर्शी सूरजमल ने किसानों और जमीदारो के साथ गजसिंहपुर रह कर विपदा की घड़ी में परचून सामग्री के साथ जरुरी आर्थिक मदद की। इससे फर्म काशीराम सूरजमल की साख, भरोसा और व्यापारिक सफलता में वृद्धि हुई। सूरजमल ने भी अपनी मेहनत, योग्यता, ईमानदारी और वचन निभाने की विश्वसनीयता से पुरे अंचल में गजसिंहपुर की साख बढ़ा दी। किसानों और जमीदारो को खेती किसानी के बीज खाद और दूसरे साधनों या जमीन को बढानें के लिए उनके आर्थिक सहयोग और परामर्श को इलाका हमेशा याद रखेगा। किसान को उपज का सही मौल और तौल मिले इसके लिए वो हमेशा जागरूक रहे। वो स्वयं जिन्सों की बोली लगाते और चाहे तपती गर्मी हो या देर रात सामने खड़े होकर तुलाई करवाते थे। सभी बही खातो में दैनिक हिसाब किताब भी वो स्वयं नियमित देखते थे। किसान को समय पर उपज का दाम दिलाने में उनकी विश्वसनीयता और भरोसा पुरे अंचल में चर्चित रहा।
गजसिंहपुर में रेल स्टेशन, चार से ज्यादा कॉटन मिल और फर्म एॅम एच् की साख और सहयोग के साथ सूरजमल की योग्यता और मेहनत ने गजसिंहपुर को इलाके की सबसे बड़ी मंडी बना दिया। आस पास के सभी इलाको के अलावा दूर पंजाब, हरियाणा से अच्छे भावो के कारण कपास बिक्री के लिए गजसिंहपुर आने लगा और मुम्बई की सूती मिलो में यहाँ की उच्च गुणवता की कपास गांठे रेल से लगातार जाने लगी। कहते है साधनों के अभाव में भी गजसिंहपुर मंडी से 3000 गांठे कपास तुलकर बैलगाडीयो से मिल पहुँच जाता था।
सूरजमलजी सामाजिक सरोकारों, धार्मिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों के निर्वाहन में भी सदैव अग्रणी रहे। अपने समधी श्री आर.के. जैन की माता श्री की स्मृति में आयोजित होने वाले मातृ वंदना समारोह में आपने 25 से ज्यादा वर्षाे तक लगातार पूरी मित्र समूह के साथ जयपुर में उपस्थिती बनाई। समूह में इलाके के कार्याे हेतु गंगानगर या जयपुर जाना, राजधानी में पोलोविक्ट्री के बजट होटलों में रहना, अधिकारियो और मंत्रियों से प्रस्तावों पर सहमति प्राप्त करना ये सब अब यादे बनकर रह गई है। सामाजिक और धार्मिक संस्थाओ को सहयोग देने में आप सदैव अग्रणी रहे, जिसने जैसी राशि की रसीद बनाई उसे तत्काल उसी राशी का सहयोग दिया। हनुमानजी के प्रति उनकी असीम आस्था रही। नियमित सालासर और चानना धाम और स्थानीय मंदिर में दर्शन करना। शिवकुटी मंदिर निर्माण और अन्य स्थानों पर कमरों के निर्माण में उन्होंने योगदान दिया। इनके पिता काशीराम जी को इलाका पित्तर रूप में पूजता था। कार्तिक सुदी चोथ को रतिजोगा और हनुमानजी का जागरण पूरे श्रध्दा, विश्वास और भक्ति से आयोजित होता रहा है।
सूरजमलजी की तेरापंथ, धर्म संघ और गुरुदेव के प्रति अपार समर्पण और श्रध्दा रही। आचार्य श्री और अन्य साधू साध्वियो के दर्शन सेवा करना, प्रवचन सुनना दिनचर्या का हिस्सा रहा है। दूरदर्शन, पारस, जिनवाणी, आदिनाथ और अन्य चौनल पर कब कौनसा प्रवचन देखना है, वो कभी नहीं भूलते और रिश्तेदारों को भी समय-समय पर ऐसे कार्यकर्माे की सूचना फोन कर देते थे। गायो को चारा देना, पक्षियों के लिए दाना-पानी रखना, कुत्ते को रोटी खिलाना, बिल्ली के लिए दूध रखना अब हमेशा यादो में ही रहेगा। वे जिंदादिली की मिशाल रहे है। क्या छोटा, क्या बड़ा, क्या बच्चा और क्या बूढ़ा इस क्षेत्रा का प्रत्येक व्यक्ति उन्हें जितना आदर और सत्कार देता था, उसे देखकर मृत्युपरांत उनके चाहने वाले उन्हें गजसिंहपुर की पूजनीय शख्सियत मानते थे।