
पूरा देश आज दशहरा के दिन रावण दहन कर अधर्म पर धर्म की जीत की खुशियां मनाते है, वहीं उत्तर प्रदेश के कानपुर में दशानन रावण के सौ साल पुराने मंदिर के दरवाजे आज विशेष पूजन और दर्शन के लिए खोले जाते हैं। दशानन रावण के इस मंदिर में केवल दशहरे के दिन ही पूजा होगी है। कानपुर के शिवाला में दशानन शक्ति के प्रहरी के रूप में विराजमान हैं।

विजयदशमी को सुबह मंदिर में प्रतिमा का श्रृंगार-पूजन कर कपाट खोले जाते हैं। शाम को आरती उतारी जाती है। यह कपाट साल में सिर्फ एक बार दशहरा के दिन ही खुलते हैं। भक्त मंडल के संयोजक बताते हैं कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे। उन्होंने ही कैलाश मंदिर परिसर में शक्ति के प्रहरी के रूप में रावण का मंदिर निर्मित कराया था।
मान्यता है कि दशानन मंदिर में दशहरे के दिन लंकाधिराज रावण की आरती के समय नीलकंठ के दर्शन श्रद्धालुओं को मिलते हैं। महिलाएं दशानन की प्रतिमा के करीब सरसों के तेल का दीया और तरोई के फूल अर्पित कर सुख समृद्धि, पुत्र और परिवार के लिए ज्ञान व शक्ति की कामना की। भक्त दशानन से विद्या और ताकत का वर मांगते हैं। अहंकार न करने का भी संदेश रावण प्रकांड विद्वान और ज्ञानी था, लेकिन उसे खुद के पराक्रम का घमंड भी आ गया था।
