पड़ोसी देश बांग्लादेश इन दिनों हिंसा की आग में झुलस रहा है। सरकारी नौकरियों में आरक्षण के मुद्दे शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन देशभर में उग्र रूप ले चुका है। इस हिंसक आंदोलन के चलते 100 से ज्यादा लोगों की जान चली गई है। प्रदर्शन पर काबू पाने के लिए राजधानी ढाका में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं। वहीं देशभर के शिक्षण संस्थानों में ताला लग गया और छात्र अपने घर वापस चले गए हैं
आरक्षण आंदोलन के बीच सरकार ने कहा है कि वह मुद्दे पर बात करने के लिए तैयार है। वहीं प्रदर्शनकारियों का कहना है कि मुद्दे के समाधान तक उनका विरोध नहीं रुकेगा। इस विरोध में प्रदर्शनकारियों को विपक्षी दलों का भी साथ मिल गया है। बांग्लादेश में जारी हिंसा के चलते भारत, अमेरिका समेत कई देशों ने अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी कर दी है। उधर संयुक्त राष्ट्र संगठन ने भी हिंसा पर चिंता जताई है।
सबसे पहले जान लीजिए बांग्लादेश में हो क्या रहा है?
कहानी 1971 से शुरू होती है। ये वो साल था जब मुक्ति संग्राम के बाद बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी मिली। एक साल बाद 1972 में बांग्लादेश की सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण दे दिया। इसी आरक्षण के विरोध में इस वक्त बांग्लादेश में प्रदर्शन हो रहे हैं।
यह विरोध पिछले महीने के अंत में शुरू हुआ था तब यह हिंसक नहीं था। हालांकि, मामला तब बढ़ गया जब इन विरोध प्रदर्शनों में हजारों लोग सड़क पर उतर आए। बीते सोमवार को ढाका विश्वविद्यालय में छात्रों की पुलिस और सत्तारूढ़ अवामी लीग समर्थित छात्र संगठन से झड़प हो गई। इस घटना में कम से कम 100 लोग घायल हो गए।
अगले दिन भी बांग्लादेश में हिंसा जारी रही और कम से कम छह लोग मारे गए। बुधवार और गुरुवार को भी और झड़पें हुईं और प्रमुख शहरों की सड़कों पर गश्त करने के लिए अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया। गुरुवार को कम से कम 19 और लोगों की मौत हो गई। इस हिंसक आंदोलन के चलते अब तक 100 से ज्यादा लोगों की जान चली गई है। विरोध के जवाब में प्रमुख विश्वविद्यालयों ने छात्रों की सुरक्षा को देखते हुए मुद्दे के समाधान होने तक अपने परिसर बंद कर दिए हैं।
अब सवाल उठता है कि आरक्षण 1972 में दिया गया तो आंदोलन अभी क्यों हो रहा है?
1972 से जारी इस आरक्षण व्यवस्था को 2018 में सरकार ने समाप्त कर दिया था। पिछले महीने उच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरियों के लिए आरक्षण प्रणाली को फिर से बहाल कर दिया। कोर्ट ने आरक्षण की व्यवस्था को खत्म करने के फैसले को भी गैर कानूनी बताया था। कोर्ट के आदेश के बाद देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
हालांकि, बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। सरकार की अपील के बाद सर्वोच्च अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को निलंबित कर दिया और मामले की सुनवाई के लिए 7 अगस्त की तारीख तय कर दी है।
मामले ने तूल और तब पकड़ लिया जब प्रधानमंत्री हसीना ने अदालती कार्यवाही का हवाला देते हुए प्रदर्शनकारियों की मांगों को पूरा करने से इनकार कर दिया। सरकार के इस कदम के चलते छात्रों ने अपना विरोध तेज कर दिया। प्रधानमंत्री ने प्रदर्शनकारियों को ‘रजाकार’ की संज्ञा दी। दरअसल, बांग्लादेश के संदर्भ में रजाकार उन्हें कहा जाता है जिन पर 1971 में देश के साथ विश्वासघात करके पाकिस्तानी सेना का साथ देने के आरोप लगा था।
बांग्लादेश की आरक्षण व्यवस्था क्या है जिस पर बवाल हो रहा है?
विरोध प्रदर्शनों के केंद्र में बांग्लादेश की आरक्षण व्यवस्था है। इस व्यवस्था के तहत स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों के लिए सरकारी नौकरियों में 30% आरक्षण का प्रावधान है। 1972 में शुरू की गई बांग्लादेश की आरक्षण व्यवस्था में तब से कई बदलाव हो चुके हैं। 2018 में जब इसे खत्म किया गया, तो अलग-अलग वर्गों के लिए 56% सरकारी नौकरियों में आरक्षण था। समय-समय पर हुए बदलावों के जरिए महिलाओं और पिछड़े जिलों के लोगों को 10-10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई। इसी तरह पांच फीसदी आरक्षण धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए और एक फीसदी दिव्यांग कोटा है।
मामला कोर्ट में फिर क्यों प्रदर्शन हो रहे हैं?
प्रदर्शनकारी छात्र मुख्य रूप से स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के लिए आरक्षित नौकरियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी इस व्यवस्था को खत्म करने की मांग कर रहे हैं, उनका कहना है कि यह भेदभावपूर्ण है और प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी के समर्थकों के फायदे के लिए है। बता दें कि प्रधानमंत्री शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब उर रहमान की बेटी हैं, जिन्होंने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का नेतृत्व किया था।
प्रदर्शनकारी चाहते हैं कि इसकी जगह योग्यता आधारित व्यवस्था लागू हो। विरोध प्रदर्शन के समन्वयक हसनत अब्दुल्ला ने कहा कि छात्र कक्षाओं में लौटना चाहते हैं, लेकिन वे ऐसा तभी करेंगे जब उनकी मांगें पूरी हो जाएंगी।
तो क्या आरक्षण को पूरी तरह खत्म करने की मांग कर रहे हैं प्रदर्शनकारी?
प्रदर्शनकारी सिर्फ स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों को मिलने वाले 30 फीसदी आरक्षण को खत्म करने की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वो अल्पसंख्यकों और दिव्यांगों को मिलने वाले आरक्षण के खिलाफ नहीं हैं।
पूरे मसले पर सरकार का क्या रुख है?
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आरक्षण प्रणाली का बचाव करते हुए कहा कि युद्ध में अपने योगदान के लिए स्वतंत्रता सेनानियों को सर्वोच्च सम्मान मिलना चाहिए, चाहे उनका राजनीतिक जुड़ाव कुछ भी हो। उनकी सरकार ने मुख्य विपक्षी दलों, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी पार्टी पर अराजकता को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। बीएनपी ने विरोध के समर्थन में गुरुवार को छात्रों के बंद के आह्वान का समर्थन किया था। इससे पहले बुधवार को अधिकारियों ने बीएनपी मुख्यालय पर भी छापा मारा था और पार्टी की छात्र शाखा के कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था।
गुरुवार को बांग्लादेश के कानून मंत्री अनीसुल हक ने कहा कि प्रधानमंत्री शेख हसीना ने उनसे प्रदर्शनकारियों के साथ बैठकर बातचीत करने को कहा है। अगर प्रदर्शनकारी तैयार हों तो वह बातचीत करने के लिए तैयार हैं।
आंदोलन का बांग्लादेश पर क्या असर पड़ सकता है?
विशेषज्ञ इस अशांति के लिए निजी क्षेत्र में नौकरियों की कमी को भी जिम्मेदार मानते हैं, जिसके कारण सरकारी नौकरियां छात्रों की पहली प्राथमिकता बन गई है। बांग्लादेश की 17 करोड़ की आबादी में से लगभग 3.2 करोड़ युवा बेरोजगार हैं या शिक्षा से वंचित हैं।
एक समय विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक रही बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था अब स्थिर हो गई है। देश की मुद्रास्फीति 10% के आसपास है और विदेशी मुद्रा भंडार घट रहा है।
ढाका स्थित डेली स्टार अखबार में अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर और विश्लेषक अनु मुहम्मद ने लिखा, ‘इतने बड़े प्रदर्शन के पीछे का कारण यह है कि कई छात्रों को अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद अपनी योग्यता के अनुसार नौकरी नहीं मिल पाती है। इसके अलावा, सरकारी नौकरी की भर्ती परीक्षाओं और चयन प्रक्रियाओं में मौजूद भ्रष्टाचार ने लोगों में बहुत निराशा और गुस्सा पैदा किया है। देश में नौकरियां पैदा नहीं हो रही हैं।