सुधा मूर्ति प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका हैं। सुधा मूर्ति ने आठ उपन्यास लिखे हैं। वह भारत की सबसे बड़ी ऑटो निर्माता इंजीनियरिंग और लोकोमोटिव कंपनी टेल्को में काम करने वाली पहली महिला इंजीनियर भी हैं। दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सॉफ्टवेयर कंपनियों में से एक इंफोसिस के चेयरमैन नारायण मूर्ति की पत्नी सुधा मुर्ती खुद इंफोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष हैं आज ये अपना 73वां जन्मदिन मना रही हैं.
सुधा मूर्ति का जन्म 19 अगस्त 1950 में उत्तरी कर्नाटक में शिगांव में हुआ था. विवाह से पहले उनका नाम सुधा कुलकर्णी था. उन्होंने बी.वी.बी.कालेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी’, हुबली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि ग्रहण की. वे राज्य में प्रथम आई, जिसके लिए उन्हें कर्नाटक के मुख्यमंत्री से एक रजत पदक प्राप्त हुआ.
सन 1974 में उन्होंने अध्ययन में और भी उन्नति की, जब उन्होंने ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस’ से कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स डिग्री ग्रहण की. उन्होंने अपने वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त किया और ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स ‘से इस उपलब्धि के लिए उन्हें स्वर्ण पदक मिला.
वे एक सामाजिक कार्यकर्ता, इंजीनियर, एक संवेदनशील शिक्षक तथा एक अत्यंत कुशल लेखिका भी हैं. अन्य कामों के साथ-साथ उन्होंने कर्नाटक में सभी सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर तथा पुस्तकालय सुविधाएँ मुहैया करने का भी कदम उठाया है. वे कंप्यूटर साइंस भी पढ़ाती हैं तथा कथा-साहित्य लेखन भी करती हैं. उन्होंने ‘डालर बहू ‘नाम से कन्नड़ भाषा में एक पुस्तक लिखी थी, कन्नड़ भाषा में जिसका अर्थ होता है ’डालर पुत्र-वधू’ बाद में ऐसे अंग्रेजी में अनूदित किया गया और ऐसे ‘डालर बहू’ शीर्षक दिया गया. सन 2001 में इस पुस्तक पर आधारित एक टी.वी.धारावाहिक भी बना. सन 1974 से सन 1981 तक वे पुणे में रहीं और उसके बाद बॉम्बे चली गई.
स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने जे.आर. डी.टाटा को पोस्टकार्ड लिखा था और उसमें यह शिकायत की थी कि ‘टाटा मोटर्स’ में लिंग पक्षपात किया जाता है, क्योंकि वहां केवल पुरूषों को ही नौकरी दी जाती है. इस शिकायत के कारण ‘टाटा मोटर्स’ के अधिकारीयों ने उन्हें इस विषय पर लंबी चर्चा के लिए बुलाया, सुधा ने ‘टेल्को’ में एक ग्रेजुएट ट्रेनी के रूप में अपना कैरियर आरंभ किया
सुधाजी जब पुणे मै जॉब कर रही थी तो उनकी मुलाकात नारायण मूर्ती से हुई और बादमे उन दोनोंने शादी भी की । सुधाजी और नारायणजी मूर्ति को 2 बच्चे है, एक लड़का और एक लड़की । नारायण मूर्ति जी अपना खुद का कारोबार करना चाहते थे लेकिन पैसे उनके पास नहीं थे । तो उन्होंने उनकी यह सोच सुधा जी के सामने रखी तो सुधाजी ने उनके यह सोच को बढ़ावा देते हुये बिज़नस शुरू करने को कहा और उनके पास जो उनकी जमा कुंजी थी 10000 वो नारायण मूर्ती को दी । नारायण मूर्ति ने उस छोटी सी प्रारंभिक राशि से ‘ इंफोसिस ‘ की शुरूआत की , जो सुधाजी ने दुःख-विपत्ति के समय के लिए बचाकर रखी थी । नारायण मूर्ति बड़े गर्व से बताते हैं कि यह उसी की बची हुई धनराशी थी, जो बंगलोर में ‘ इंफोसिस ‘ स्थापित करने में सहायक बनी ।
प्रत्येक भूमिका में सफलता का सार सदैव एक ही रहा है, सुधा कहती हैं – “आप जो भी काम करें, अच्छी तरह से करें. प्रत्येक कार्य में मेरा उद्देश्य एक ही रहा है – जब आप एक अधीनस्थ हों, तो अपने व्यवसाय के प्रति ईमानदार और निष्ठावान रहें तथा व्यावसायिक बनें, लेकिन जब आप बॉस की हैसियत में हों, अपने अधीनस्थों का ध्यान रखें ठीक उसी तरह, जैसे जब बच्चे घर पर हों, माँ को उनके साथ होना चाहिए, क्योंकि उन्हें माँ की जरूरत होती है” ।
सुधाजी को 2006 में पद्मश्री पुरस्कार से सन्मानित किया गया है । उन्हें सन 2000 मै ‘राज्यप्रष्टि’ अवार्ड साहित्य और समाजसेवा के लिए प्रदान किया है ।
ये सभी तो वो बातें थी जो आम-तौर पर आपको कहीं न कहीं से पता ही चल ही जाएंगी। लेकिन अब हम आपको सुधा मूर्ति के कुछ रोचक तथ्य के बारे में बताएंगे जिसके बारे में आपने आज तक नहीं सुना होगा।
कोरोना के दौरान मदद
ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि कोरोना के दौरान सुधा मूर्ति ने 100 करोड़ रुपए की मदद की थी। उस मुश्किल घड़ी में इनफोसिस फाउंडेशन ने ये ऐलान किया है कि उनके द्वारा 100 करोड़ रुपए दान किए जाएंगे। 50 करोड़ रुपए PM Cares Fund में दिए गए। बाकी बचे हुए 50 करोड़ रुपए भारत की असपताल सेवाओं को सुधारने के लिए दिए गए।
टाटा ग्रुप को चिट्ठी लिखी –
आपको जानकर हैरानी होगी कि सुधा मूर्ति ने टाटा समूह को एक पोस्टकार्ड भेजा था। इसमें उन्होंने इस बात की शिकायत की थी कि कंपनी में सिर्फ पुरुष कर्मचारियों को ही नौकरी पर क्यों रखा जाता है। जब यह पोस्टकार्ड टाटा समूह के हाथ लगा तो कंपनी ने सुधा मूर्ति को एक स्पेशल इंटरव्यू के लिए बुलाया और फिर उन्हें टाटा समूह में शामिल कर लिया था।
इंफोसिस फाउंडेशन
इस संस्था ने बाढ़ वाले इलाके में करीब 2300 घरों को बनाने में मदद की है। इस फाउंडेशन ने हमारे देश में 70 हज़ार लाइब्रेरी बनाया है।
फिल्म में काम किया
साल 2006 सुधा मूर्ति ने एक कन्नड़ सीरियल में जज का रोल निभाया था। उन्होंने साल 2017 में एक मूवी में भी काम किया था। उस मूवी का नाम है उप्पू हुली खरा।
सुधा मूर्ति की किताबें
देखा जाए तो सुधा मूर्ति ने कई सारी किताबें लिखी हैं, जैसे सामनाराल्ली असमान्यारू,तामुला, डॉलर सोस आदि। लेकिन हम आपको कुछ पुस्तकों के बारे में बताएंगे जो काफी मशहूर हैं।
डॉलर बहू – आपकी जानकारी के लिए बता दे “डॉलर बहू” एक ऐसी कहानी है जहाँ बताया गया है कि लोग एक-दूसरे को कैसे देखते हैं। यह कहानी सुधा मूर्ति की विख्यात कहानी में से एक है। असल में यह कहानी एक विनीता नाम की औरत की है। इस कहानी में प्यार और विश्वास से कैसे रिश्तों को जीता जा सकता है इसके बारे में बताया गया है।
महाश्वेता – महाश्वेता पुस्तक भी सुधा मूर्ति की सबसे लोकप्रिय पुस्तकों में से एक है। इस पुस्तक में भ्रम और विश्वासघात से प्रभावित दुनिया में साहस की कहानी है।
वाइज एंड अदरवाइज – आपकी जानकारी के लिए बता दे वाइज एंड अदरवाइज सुधा मूर्ति की ऐसी बुक है जो सबसे ज्यादा लोगों ने पढ़ा है।इस पुस्तक में आपको वास्तविक जीवन की घटनाओं का संग्रह मिलेगा है।