दिल्ली-एनसीआर समेत देश के अन्य इलाकों में आज भूकंप के झटके महसूस किए गए। रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता 6.2 मापी गई। भूकंप के झटकों से दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले लोग कांप गए। भूकंप की दृष्टि से दिल्ली बहुत संवेदनशील है।
दिल्ली-एनसीआर के साथ ही लखनऊ से नेपाल तक भूकंप के झटके महसूस किए गए। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के अनुसार भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमान पर 6.2 मापी गई। एनसीएस ने बताया कि नेपाल में रिक्टर पैमाने पर 6.2 तीव्रता का भूकंप आने के बाद मंगलवार दोपहर 2:51 बजे दिल्ली-एनसीआर में तेज झटके महसूस किए गए। नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के अनुसार भूकंप का केंद्र नेपाल में था और गहराई पांच किलोमीटर थी। भूकंप में अभी तक जान-माल के नुकसान की कोई जानकारी नहीं मिली है। दिल्ली-एनसीआर में भूकंप के झटकों से दिल्ली-एनसीआर के लोग दहशत में आ गए। सबसे अधिक डर हाइराइज इमारतों में रहने वाले लोगों को लगा। ऑफिसेज में तो लोग जल्दी से बाहर आ गए। सोशल मीडिया पर कई वीडियो में लोग अपने घरों और ऑफिसेज से बाहर निकलते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि यदि दिल्ली-एनसीआर में अधिक तीव्रता का भूकंप आ जाए तो क्या होगा। आखिर दिल्ली ऐसे भूकंप के लिए कितनी तैयार है।
दिल्ली-एनसीआर में क्यों है अधिक खतरा
भूकंपीय क्षेत्र के हिसाब से दिल्ली भूकंपीय मानचित्र के जोन-IV में आता है। इसका मतलब है कि यह भूकंप की दृष्टि से उच्च जोखिम वाला भूकंपीय क्षेत्र है। इससे दिल्ली भूकंप के प्रति संवेदनशील हो जाती है। इसका सीधा मतलब है कि यहां इमारतों और बुनियादी ढांचे को नुकसान होने का खतरा बढ़ जाता है। भूकंप विज्ञान केंद्र के मुताबिक दिल्ली और आसपास के इलाकों से कई फॉल्ट होकर गुजरते हैं। इन फॉल्ट लाइनों में दिल्ली-मुरादाबाद फॉल्ट, दिल्ली-हरिद्वार और सोहना फॉल्ट मुख्य है। ऐसे में समझना होगा कि आखिर ये फॉल्ट हैं क्या? फॉल्ट जोन वो इलाके होते हैं, जिनमें चट्टानें अलग-अलग दिशा में गति कर रही होती हैं। इन फॉल्ट लाइनों में रिक्टर पैमाने पर 6 की तीव्रता का भूंकप पैदा करने की क्षमता होती है। सबसे ज्यादा संवेदनशील गुड़गांव है जिसके आसपास सात फॉल्ट लाइन मौजूद है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर 8 से अधिक तीव्रता का भूकंप आया तो शहर की करीब 20 प्रतिशत बिल्डिंग ही बच पाएंगी।
दिल्ली को हिमालयी इलाकों के भूकंप से खतरा
खास बात है कि दिल्ली में सबसे अधिक खतरा हिमालयी क्षेत्र में आने वाले भूकंप से हैं। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है। दिल्ली से हिमालय की दूरी करीब 250 किलोमीटर है। उदाहरण के लिए यदि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में रिक्टर पैमाने पर 8 की तीव्रता का भूकंप आता है तो दिल्ली को अधिक नुकसान पहुंचने की आशंका है। इसके अलावा यदि उत्तराखंड के गढ़वाल या कुमाऊं में 8 या 9 की तीव्रता का भूंकप आता है दिल्ली-एनसीआर के क्षेत्र में बड़ा नुकसान हो सकता है। इससे साफ है कि हिमालय क्षेत्र में आने वाले अधिक तीव्रता के भूकंप से जानमाल के नुकसान की आशंका बनी रहती है।
कितनी मजबूत हैं दिल्ली की इमारतें
जीआरआईएचएच काउंसिल के संस्थापक मानित रस्तोगी के अनुसार साल 2001 गुजरात भकंप के बाद दिल्ली को जोन तीन से जोन चार में शिफ्ट कर दिया गया था। हालांकि, सारी इमारतें इसके पहले डिजाइन और बनाई गई थीं। मैं यह कहूंगा कि दिल्ली की सिर्फ 10 प्रतिशत इमारते हीं अधिक तीव्रता के भूकंप को झेल सकती हैं। केंद्रीय भू विज्ञान मंत्रालय के एक पुरानी स्टडी के अनुसार यमुना की बाढ़ से प्रभावित होने वाले क्षेत्र में उन स्थानों को चिह्नित किया है जहां भूकंप का खतरा सबसे अधिक है। इनमें पूर्वी दिल्ली के घनी आबादी वाले रिहायशी इलाके को शामिल किया गया हैं। इसके अलावा खतरे वाले इलाकों में सरिता विहार, पश्चिम विहार, वजीराबाद, करोल बाग और जनकपुरी है। सुरक्षित स्थानों में जेएनयू, एम्स, छतरपुर, नारायणा और वसंत कुंज है जो संभवतः भूकंप झेल सकते हैं।
भूकंप को लेकर क्या कहती है रिपोर्ट?
पृथ्वी मंत्रालय और एमसीडी की तरफ से साल 2020 दिल्ली में भूकंप के खतरे को लेकर एक सर्वे किया गया था। सर्वे में यह पाया गया था कि दिल्ली के 90 प्रतिशत भवन सिस्मिक जोन-4 के खतरों से निपटने के स्टैंडर्ड पर खरे नहीं उतरते हैं। राजधानी में ऊंची-ऊंची इमारतों के निर्माण और भारी भीड़ के कारण इमरजेंसी की हालत में में राहत और बचाव कार्य भी बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। यह एक चिंता का बड़ा विषय है। दिल्ली में इमारतों को भूकंपरोधी और उनकी मजबूती सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली हाइकोर्ट ने आदेश दिया था। इसके बाद साल 2019 में एक एक्शन प्लान भी बना था। इसके तहत दो साल में सभी ऊंची इमारतों और अगले तीन वर्ष में सभी इमारतों की ढांचागत मजबूती सुनिश्चित करने को कहा गया था। हालांकि, अभी भी यह काम नहीं हो पाया है