मणिपुर में पिछले तीन महीने से जारी हिंसक घटनाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार (1 अगस्त) को फिर सुनवाई करेगा. दोपहर 2 बजे सुनवाई होनी है, कोर्ट ने सरकार से अब तक की कार्रवाई को लेकर सवाल पूछे हैं. 31 जुलाई को हुई सुनवाई में कोर्ट ने सरकार से पूछा कि जब 4 मई को दो महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने की घटना हुई तो एफआईआर 18 मई को क्यों दर्ज हुई. कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि अभी तक जो 6000 केस दर्ज हुए है, उनमें कितने मामले ऐसे हैं, जो महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े हैं.
इसके अलावा, अदालत ने जांच की निगरानी के लिए रिटायर जजों की समिति या फिर विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का सुझाव दिया. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ मामले की सुनवाई कर रही है. पीठ ने कहा कि कोर्ट नहीं चाहता कि राज्य की पुलिस मामले की जांच करे क्योंकि उन्होंने महिलाओं को दंगाई भीड़ को सौंप दिया था.
प्रभावित लोगों के पुर्नवास के लिए सरकार के कदम का भी मांगा ब्योरा
कोर्ट ने कहा कि वह राज्य में स्थिति की निगरानी के लिए एक एसआईटी या पूर्व न्यायाधीशों वाली एक समिति का गठन कर सकती है. हालांकि, यह मंगलवार को सुनवाई के दौरान केंद्र और मणिपुर की ओर से पेश विधि अधिकारियों की दलीलों पर निर्भर करेगा. कोर्ट ने सरकार से राज्य में दर्ज ‘जीरो एफआईआर’ की संख्या और अब तक हुईं गिरफ्तारियों के बारे में जानकारी देने को भी कहा. सरकार ने हिंसक घटनाओं में प्रभावित लोगों के पुनर्वास को लेकर भी विवरण मांगा कि उनके लिए भारत सरकार से किस तरह के राहत पैकेज की उम्मीद है और राज्य सरकार ने क्या मदद मुहैया कराई है.
जांच असम ट्रांसफर करने पर जताई आपत्ति
कोर्ट में चार मई के वीडियो में नजर आईं दो महिलाओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि दोनों पीड़ित अपने मामले की सुनवाई असम स्थानांतरित किए जाने का विरोध कर रही हैं. इस पर केंद्र और राज्य सरकार का पक्ष रखते हुे हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया और कहा कि केंद्र ने कभी नहीं कहा कि मुकदमा असम स्थानांतरित किया जाए. केंद्र ने कहा है कि सुनवाई मणिपुर के बाहर किसी राज्य में होनी चाहिए. सिब्बल ने राज्य पुलिस पर हिंसा करने वालों के साथ मिलीभगत का भी आरोप लगाया और कहा कि पीड़िता चाहती हैं कि मामले की जांच एक स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए जिस पर उन्हें भरोसा हो. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए सीबीआई को जांच जारी रखनी चाहिए.
इसके अलावा, सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि हिंसा मामले में उसके हस्तक्षेप की सीमा इस पर निर्भर करेगी कि सरकार ने अब तक क्या किया है और अगर कोर्ट इससे संतुष्ट है कि अधिकारियों ने पर्याप्त रूप से काम किया है, तो वह बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं कर सकती.