साभार : Rabindranath Tagore Poetry:
Kavya Desk काव्य डेस्क
जानता हूँ, कालसिन्धु
अपनी रोज़-रोज़ की नियमित तरंगों की मार से
उसे लुप्त कर देगा।
मेरा विश्वास अपने-आप में है।
दोनों शाम उसी विश्वास के पात्र में भर-भर
इस विश्व की
अमर सुधा का मैंने पान किया है।
क्षण-क्षण का प्रेम
उसके भीतर संचित हुआ है।
दुःख के भार से यह पात्र नहीं दरका;
धूल ने उसके शिल्प को काला नहीं किया।